Wednesday, August 1, 2012

SPARSH HIN



स्पर्श हीन



पत्थर भी रोया करते थे

तुम जहर  जो बोया करते थे

उस पनघट पे, उस आँगन पे, ये दिल  छन -छन  कर झरता था

हर  महफ़िल में, हर दामन में, बस तुमको ढूंढा  करता था ...


शिकवे भी राजी लगते थे ,
बस अड्डे खाली लगते थे ,



दर्पण -दर्पण, पानी -पानी सबमे साये  से  दिखते  थे ,
कुछ इठलाते कुछ बलखाते पर सब तुमसे  ही लगते  थे ,

  वो समां गया, सब चुरा  गया
बस इन  हाथों को मय(मदिरा) थमा गया .....

अब जहर घोल  के पीते है  ,

 उन यादो के संग जीते है ,
.
पर अब जब तुम रोने आना ,

उन अंगारों को  घर रख आना ,

जीते नहीं तो मरते-मरते दो- चार  फूल चढ़ा जाना -2...... .:(




$@urab#  paliwal (रौनक)


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