Tuesday, April 19, 2016

समय या स्वयं

इक माटी की अरज सुनो
सुर नया ही गाकर कहती हे।
तुम समय की  कर्कश काया हो
कुछ स्वलेखो का साया हो।
कभी भिक्षुक भी गद्दी पाता हे और राणा दर दर मंडराता है ,
कभी सिफर चन्द्रमा हो उठता और सूरज हर सावन चुप जाता है।

इक माटी की अरज सुनो
सुर नया ही गाकर कहती हे।
की जो रक्त पसीना रंजीत हो
जो रक्त रवानी अंगीत हो,
वो रक्त समय का भाव नहीं
वो अंगारो का दास नहीं।
सूरज फिर जगमग फैलाएगा  चन्दा रवा हो जाएगा ,
तो उठो की तुम ही सर्वशक्त हो बढ़ो की  तुम ही सुरसमस्त हो
और अंत तभी लेना जबकि भवसागर तर जाए
चाहे छूटे प्राण सभी या अंत वही आ जाए। 

Wednesday, August 1, 2012

SPARSH HIN



स्पर्श हीन



पत्थर भी रोया करते थे

तुम जहर  जो बोया करते थे

उस पनघट पे, उस आँगन पे, ये दिल  छन -छन  कर झरता था

हर  महफ़िल में, हर दामन में, बस तुमको ढूंढा  करता था ...


शिकवे भी राजी लगते थे ,
बस अड्डे खाली लगते थे ,



दर्पण -दर्पण, पानी -पानी सबमे साये  से  दिखते  थे ,
कुछ इठलाते कुछ बलखाते पर सब तुमसे  ही लगते  थे ,

  वो समां गया, सब चुरा  गया
बस इन  हाथों को मय(मदिरा) थमा गया .....

अब जहर घोल  के पीते है  ,

 उन यादो के संग जीते है ,
.
पर अब जब तुम रोने आना ,

उन अंगारों को  घर रख आना ,

जीते नहीं तो मरते-मरते दो- चार  फूल चढ़ा जाना -2...... .:(




$@urab#  paliwal (रौनक)


Tuesday, July 31, 2012

CHINGARI


CHINGARI
SHAMMA KO JALNE KA MAUKA TO MILNA CHAHIYE
EK CHINGARI SE HI SAHI -2        KAHI AAG TO JALNI CHAHIYE-2
IS RAAT KE MUKHDE SE PALLU HATAKAR
EK SUBAH KI AAS TO JAGNI CHAHIYE
KAHI AAG JALNI CHAHIYE -2


ME EK AFSANA HU, PARWANA HU, PEGAMBAR KA YUVA SHAKTI KA
RAMLILA KE GALIYARO SE HI SAHI
PAR AGAR HO KAHI AAG-2
TO WO AAG JALNI CHAHIYE-2

TUNE TO DEKHA HE MERA YE RANG HIJRAT SE
KABHI ZAMIN PE UTAR KE DEKH MERA DHANG FURSAT SE
ME EK ANGARA HU SHAKHO PE RAHTA HU ME NAFRAT KI
KABHI IN SHAKHO KO MOHABBAT KI BARISH ME BHIGO TU DEKH
EK ARMAAN HE SINE ME KI MAJHAB MITA DENGE
IS ARMAANKE AFSAANE KO CHINGARI LAGA TU DEKH
EK CHINGARI SE HI SAHI
KAHI AAG LAGA TU DEKH-2

PANI KI TARAH TU CHAL IS AGNI KE TAT PE
RANA KI TARAH TU LAD APNE ATMASAMBAL SE
MENE KAHA HE-2 AAG TO HUM HAR JAN LAGA DENGE
TU EK CHINGARI TO LAGA IS GAHRE SAMUDRA ME-2



IT’S A SELF COMPOSED
POEM
BY
SaURABH
PALIWAL